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Thursday, January 14, 2010
Tuesday, January 12, 2010
सूरह मायदा
काश उन्होने तोराह ओर इन्जील ओर उन दूसरी किताबों को कायम किया होता जो उनके रब की तरफ़ से उन के पास भेजी गई थीं. ऐसा करते तो उन के लिये उपर से रिज़्क बरसता और नीचे से उबलता. अगर चे उन मे कुछ लोग रास्तरो भी हैं लेकिन उनकी अकसरियत सख्त बदअमल है.---सूरह मायदा
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सूरह मायदा
ऎ पैगम्बर (स.अ.व.) जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है वो लोगों तक पहुंचा दो. अगर तुम ने ऐसा किया तो उसकी पैगम्बरी का हक अदा किया. अल्लाह तुम को लोगों के शर से बचाने वाला है. यकीन रखो कि वो काफ़िरों को (तुम्हारे मुकाबले में) कामयाबी की राह हरगिज़ न दिखाएगा.--सूरह मायदाह
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सूरह मायदा
साफ कह दो कि " ऐ एहले किताब! तुम हरगिज़ किसी असल पर नहीं हो जब तक कि तोराह और इन्जील और उन दूसरी किताबों को कायम न करो जो तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे रब की तरफ़ से नाज़िल की गईं हैं. " ज़रूर है कि ये फ़रमान जो तुम पर नाज़िल किया गया है उन में से अकसर की सरकशी और इन्कार को और ज़यादा बढा देगा. मगर इन्कार करने वालों के हाल पर कुछ अफ़सोस न करो. (यकीन जानो कि यहां अजारा किसी का भी नहीं है) -सूरह मायदाह
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