
Courtesy by http://www.quranurdu.com/
काश उन्होने तोराह ओर इन्जील ओर उन दूसरी किताबों को कायम किया होता जो उनके रब की तरफ़ से उन के पास भेजी गई थीं. ऐसा करते तो उन के लिये उपर से रिज़्क बरसता और नीचे से उबलता. अगर चे उन मे कुछ लोग रास्तरो भी हैं लेकिन उनकी अकसरियत सख्त बदअमल है.---सूरह मायदा
ऎ पैगम्बर (स.अ.व.) जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है वो लोगों तक पहुंचा दो. अगर तुम ने ऐसा किया तो उसकी पैगम्बरी का हक अदा किया. अल्लाह तुम को लोगों के शर से बचाने वाला है. यकीन रखो कि वो काफ़िरों को (तुम्हारे मुकाबले में) कामयाबी की राह हरगिज़ न दिखाएगा.--सूरह मायदाह
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साफ कह दो कि " ऐ एहले किताब! तुम हरगिज़ किसी असल पर नहीं हो जब तक कि तोराह और इन्जील और उन दूसरी किताबों को कायम न करो जो तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे रब की तरफ़ से नाज़िल की गईं हैं. " ज़रूर है कि ये फ़रमान जो तुम पर नाज़िल किया गया है उन में से अकसर की सरकशी और इन्कार को और ज़यादा बढा देगा. मगर इन्कार करने वालों के हाल पर कुछ अफ़सोस न करो. (यकीन जानो कि यहां अजारा किसी का भी नहीं है) -सूरह मायदाह Courtesy by http://www.quranurdu.com/
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